अष्टावक्र गीता - प्रथम अध्याय - आत्मानुभवोपदेश - श्लोक 9 - अज्ञान के जंगल को.... (Youtube Short# 5) (Ashtavakra Gita - Chapter 1 - Teaching of Self-Realization - Verse 9)
🌹 अष्टावक्र गीता - प्रथम अध्याय - आत्मानुभवोपदेश - श्लोक 9 - अज्ञान के जंगल को "मैं शुद्ध चैतन्य हूं" की ज्ञानाग्नि से जलाकर मुक्त होकर जीवन जियो। 🌹 🍀 5. मानसिक पीड़ा को पार करना. 🍀 ✍️ प्रसाद भारद्वाज https://www.youtube.com/shorts/cTUHzODqpxo इस वीडियो में, हम अष्टावक्र गीता के पहले अध्याय के 9वें श्लोक का विश्लेषण करते हैं, जो आत्मज्ञान का सार सिखाता है। "मैं शुद्ध चैतन्य हूं" की ज्ञानाग्नि से अज्ञान रूपी जंगल को जलाकर, मन को शुद्ध कर, मानसिक पीड़ा को पार करते हुए, कैसे मुक्त और दुखरहित जीवन जिया जा सकता है, यह जानें। इस श्लोक के माध्यम से, अष्टावक्र महर्षि यह बताते हैं कि आत्मा को पहचानना और उसके शुद्ध, अपरिवर्तनीय स्वरूप में स्थिर रहना कितना महत्वपूर्ण है। जब हम शुद्ध चेतना के रूप में अपने वास्तविक स्वरूप के प्रति जागरूक रहते हैं, तो हम अज्ञान और दुखों के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। अहंकार और इच्छाओं से भरे अज्ञान के जंगल को आत्मज्ञान की अग्नि से जला दिया जाता है।. प्रसाद भारद्वाज. चैतन्य विज्ञानम चैनल को सब्सक्राइब करें। लाइक करें, शेयर करें । - प्रसाद भारद्...